हार
अब अंधेरी गलीया सुकून देने लागी है क्यू अपने साये से भी डरने लगे है। ना चहात है किसी पुकार कि ना आवाज दे किसीको भी । ये गुमनामी के अंधेरे मुझे फीरसे घेरने लगे है कोई हमे ढुंडे भी कैसे जब हम ख़ुदीको खोने लगे है। आवाज देके पुकारे खुदको हम के हारे तो नहीं है अभी हम । हार तो पहले मन में होती है फिर मैदाने जंग में होती है । कामयाबी के देखकर ख्वाब हकीकत मे बनेंगे कामयाब। मांगके दुआ ईश्वर और खुदासेभी और मांगें ये रहमत ख़ुद से भी। कबूल तो होनी हीं है हर दुआ शिद्दतसे मांगकर देखो तो जरा। जो पहले ख़ुदही हाथ देंगे ख़ुदको तो कायनात भी साथ देंगी हमको।